क्या है यह किताब---
उर्दू के खुदा -ए-सुख़न मीर तकी मीर के तारीख़ी शेर की दो लाइनें
“…दिल्ली जो शहर था आलम में इंतिखाब,
हम रहने वाले हैं उसी उजड़े दयार के”
बड़े मुख़्तसर में मगर संजीदगी से बयान करती हैं दास्तान उस दिल्ली की जो न जाने कितनी ही बार आबाद हुई और न जाने कितनी ही बार बर्बाद हुई। हाथों में जो किताब सोंपी जा रही है उसे आबाद होने और बर्बाद होने के दौर की अनेकों दर्दनाक या फिर ख़ुशगवार दास्तानों से आरास्ता किया गया है।
दिल्ली शहर के खंडहरों और चप्पों में न जाने कितनी ही दर्दनाक हैरतअंगेज दास्तानें दबी पड़ी हैं जो बाहर निकलने के लिए तड़प रही हैं । इस किताब में खंडहरों के पत्थरों के बोझ तले दबे इन्हीं कुछ किस्सों को उतारा गया है । यूँ तो किताब दिल्ली शहर के अब तक रहे सफ़र का पूरा आईना नहीं है ताहम पेश किए गए बुलंद और दिलचस्प क़िस्से यक़ीनन आम आदमी में दिल्ली को और बेहतर समझने के लिए कौतुहल जरूर जगाएँगे।
पेश की जा रही दास्तानें साफ़ दिखाती हैं कि है जरूर कुछ बात दिल्ली में कि मिटती नहीं इसकी हस्ती। दरअसल जो बात दिल्ली में है वो किसी और शहर में नहीं है। न जाने कितने ही शहर कुदरती हादसों या फिर आदमी की हवस का शिकार हो गए और मिट गए हमेशा के लिये मगर दिल्ली हमेशा जिंदाबाद रही और ये और भी जवान होती जा रही है।
इन सभी दिलचस्प किस्सों को लिखने में इतिहास के अलग अलग सुरागों, अक़ीदों, कहावतों मसलन १८४७ में लिखी सर सैयद अहमद खां की किताब आसार उस सनादीद, मौलवी ज़फर हुसैन की मौनूमेंट्स आफ देहली (१९१९ ) और कार स्टीफ़न की १८७६ में लिखी किताब आर्कियोलॉजी एंड मौनूमेंटल रिमेंस आफ देहली वगैरह में दर्ज रही जानकारी का भरपूर इस्तेमाल किया गया है।
यक़ीन है इस किताबी थाली में परोसे जा रहे क़िस्से लोगों का मनोरंजन करेंगे और दिल्ली को और जानने के लिए उनमें कौतुहल जगाने में कामयाब होंगे।